Thursday, October 21, 2010

"भईया"






नम आँखें...
आँखों में इंतज़ार...
कभी घड़ी को तकती...
तो कभी दरवाज़े की चौखट को...
और कभी थाली में सजी रेशम की डोर को...
उसमें सजे मोतियों की चमक में दिखता तेरा मुस्कुराता चेहरा...
और खो जाती मैं उस सुन्हेरे बचपन में...
जहाँ हर पल तेरा मुझे छेड़ना...
मुझे चिढ़ाना और चोटी खींचना...
तब भी आंसू देता था और आज भी...

तेरा शैतानियाँ करना और मेरा उन्हें माँ से छुपाना...
मुझे कोई रुलाये तो तेरा ज्वालामुखी बन जाना...
वो पेड़ से अमरुद तोड़ना...
वो गन्नें के खेतों में चोरी करना...
वो कच्चे आम का अचार...
वो स्कूल ना जाने पर बाबा की मार...
सब हैं आज भी वैसे...
पर सिर्फ, यादों में...
बदले तो तुम, भईया...

पेट पालने हमारा... शहर जाना तुम्हारा...
और फिर मनीआर्डर तक ही सिमट जाना रिश्ता हमारा...
हर बरस राखी पर मेरा शाम तक,
यूँही तेरी राह तकना...
और फिर डाकिया चाचा का,
तुम्हारा बहानों भरा तार दे जाना...
बस,
अब यही तो बचा था राखी का त्यौहार, भईया...!!

::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani::::::::

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