बस, अब और नहीं...
कब तक...
आखिर कब तक...
यूँही दबाओगी मुझे...
अब नहीं होता...
नहीं रहा जाता मुझसे चुप...
नहीं घुट सकती और तेरे अंदर...
निकलने दो मुझे...
और आखिर गूंज ही उठी...
मेरी सिसकियाँ...!!
शायद रोकना अब आसान था भी नह्यीं उन्हें...
आखिर कब तक दबा सकती थी इन्हें...
अपने खोते वज़ूद,
की सज़ा...
भला इनके वज़ूद को क्यों...???
इनकी गूंज ने दी एक खोई सी राहत...
जैसे बरसों से क़ैद पंक्षी को...
आज मिलें हों पंख फडफडानें को...
पर फिर भी क्यूँ थी इक टीस सी इनमें...???
शायद पंखो की फडफडाहट से...
मन हो चला था इनका, उडनें का...
पर नहीं...
ये कैसे हो सकता था...
नामुमकिन...
और फिर एक बार, दबा दिया इनका गला...
और रंग दिए अपने हाथ...
एक बार फिर...
खून से...
मेरी सिसकियों के...!!
::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani::::::::
कब तक...
आखिर कब तक...
यूँही दबाओगी मुझे...
अब नहीं होता...
नहीं रहा जाता मुझसे चुप...
नहीं घुट सकती और तेरे अंदर...
निकलने दो मुझे...
और आखिर गूंज ही उठी...
मेरी सिसकियाँ...!!
शायद रोकना अब आसान था भी नह्यीं उन्हें...
आखिर कब तक दबा सकती थी इन्हें...
अपने खोते वज़ूद,
की सज़ा...
भला इनके वज़ूद को क्यों...???
इनकी गूंज ने दी एक खोई सी राहत...
जैसे बरसों से क़ैद पंक्षी को...
आज मिलें हों पंख फडफडानें को...
पर फिर भी क्यूँ थी इक टीस सी इनमें...???
शायद पंखो की फडफडाहट से...
मन हो चला था इनका, उडनें का...
पर नहीं...
ये कैसे हो सकता था...
नामुमकिन...
और फिर एक बार, दबा दिया इनका गला...
और रंग दिए अपने हाथ...
एक बार फिर...
खून से...
मेरी सिसकियों के...!!
::::::::जूली मुलानी::::::::
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