Tuesday, June 28, 2011

Simply "ME"... Slideshow

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Thursday, June 23, 2011

"वो" और "मैं"...!!

((जब-जब 'खुद' को देखना चाहा... खुद को दो हिस्सों में बंटा पाया... कभी "वो" जो जीती ज़िन्दगी... तो कभी "मैं" जिसे जीती ज़िन्दगी... कुछ शब्द सिर्फ 'मेरे' बारे में... मेरी 'नज़र' में... मुझे जानने के लिये... मुझे समझने के लिये...))
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वो सोचती बहुत...
मैं उसे रोक नहीं पाती...
वो नादाँ बहुत...
मैं उसे समझा नहीं पाती...
वो हंसती बहुत...
मैं मुस्कुरा भी नहीं पाती...

वो अनजान सबकी निगाहों से...
मैं जानती वो ये परख नहीं पाती...
वो समझती कि वो समझती है सबको...
मैं नासमझ कि मैं खुद को नासमझ हूँ पाती...
वो खुश कि वो नहीं जानती छल-कपट...
मैं नाखुश कि मैं ये छल से उसे वाकिफ करा नहीं पाती...
वो रखती बड़ा दिल हर किसी के लिये...
मैं बड़े दिल में भी खुद को समां नहीं पाती...

वो उभरती हर नए दिन के साथ...
मैं हर शाम के साथ गहरा नहीं पाती...
वो करती कोशिशें दिल ना तोड़ने की...
मैं टूटे दिलों को नज़रें उठा देख भी ना पाती...
वो मदमस्त अल्हड़ पवन की तरह...
मैं गंभीर, खुद को वक़्त-सा चलता पाती...
वो सजाती इन्द्रधनुष सपनों के आसमान में...
मैं बादलों से इन्द्रधनुष को छुपता पाती...

वो पसंद ना करती मुझे...
मैं उसे अपनी पसंदगी में ना पाती...
वो करती तकरार, रखती तर्क अपनें...
मैं चुप रहती, उसे नकार ना पाती...
वो तंग आ चुकी मुझसे पर साथ ना छोड़ती...
मैं भी मजबूर उस से जुदा हो ना पाती...
वो करती जब ढोंग मुझसे अनजान रहने का...
मैं भी तब उसकी नाराज़गी नज़रंदाज़ कर पाती...

वो बढ़ती रहती अपनें रास्ते...
मैं अपनें क़दम मंजिल को बढ़ता पाती...
वो चाहतें रखती बेशुमार...
मैं झूठी चाहतों को पनाह दे ना पाती...
वो अपनें अन्दर की "मैं" बन ना पाती...
मैं अपनें अन्दर की "वो" से खुद को दूर होता पाती...!!

:::::::: जुली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::



Wednesday, April 13, 2011

बुलबुला...





 उठा था चमकता-दमकता....
जोश से... ... ...
ये भूल... कि है पल भर का खेल...

इतना नाज़ुक...
जहाँ स्पर्श तो दूर...
हवाओं संग आये चंद खिर्चे तक...
लूट लेंगे... उसका 'अस्तित्व'...
ना छोड़ेंगे कोई निशाँ... उसका...

मगर वो...
वो तो सब कुछ जान के भी...
उड़ रहा था ऊंचा... और ऊंचा...
इस बात से अनजान...
कि ज्यादा ऊंचाई...
अक्सर गिरने का भी मौका नहीं देती...
वो ख़त्म कर देती है... 'सब कुछ'... वहीँ...
पर फिर भी... वो खुश था...
अपनीं 'पल' की ज़िन्दगी से भी...

साफ़ था वो बिलकुल...
निश्छल...
हल्का-सा सतरंगी... ... ...

किसी आईने की तरह... ... ...
जो देखता, हलकी-सी उसकी झलक दिखलाता...
देख उसकी मुस्कान...
उसके करीब जाता...
मगर, वही नजदीकी...
उसकी मुस्कान छीन लेती...

एक प्यार भरा स्पर्श भी,
कहाँ नसीब होता है... किसी-किसी को...
मासूम-सी मोहब्बत की तरह...
होता है 'अंजाम'... ... ...
हर नाज़ुक चीज़ का...
हर नाज़ुक 'एहसास' का...
हर नाज़ुक... "बुलबुले" का... ... ...!!

:::::::: जूली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::

Saturday, March 19, 2011

ये "कैसी"... 'होली'...???


'हंसी-ठिठोली', मस्तियों की "टोली"... करें 'अठखेली', बन "हमजोली"...
हर 'साल' की तरह... लो फिर आई "होली"... ... ...
लेकर... ... ...
वही 'रंग'... वही 'ढंग'...
वही 'रस्म'... वही 'रिवाज़'...
मगर... ... ...
रंगों में वो 'चमक' नहीं...
ढंगों में वो 'दमक' नहीं...
रस्मों में वो 'विश्वास' नहीं...
रिवाजों में वो 'एहसास' नहीं...
पहले बिक ना पाता था 'प्यार'...
अब उसकी 'बोली' लगती है...
पहले ख़रीदा ना जाता था 'ऐतबार'...
अब उसको 'होली' जलती है...

हर 'चौराहे' पर प्रकृति का "हास" हो रहा है...
होलिका 'हंस' रही है, प्रहलाद का "उपहास" हो रहा है...
"मानवता-भाईचारे" का रंग कहीं 'छुप-सा' गया है...
"ईर्ष्या-द्वेष" के रंग से चेहरा उनका 'पुत-सा' गया है...
मिठाइयों की  'मिठास', मन की "कडवाहट" ना भरती...
मदिरा की 'प्यास', ठन्डे चूल्हों में गर्म "आहट" ना करती...

गुब्बारों की 'चोट' में वो "स्नेह" नहीं...
पिचकारियों की 'धार' में वो "नेह" नहीं...
फागुन में 'गूंजता' अब "फ़ाग" नहीं...
गीतों में 'घुलता' अब "राग" नहीं...
कैसी मना रहा 'आज' होली ये "संसार" है...???
"एकजुट" जो रहते थे 'कभी'... 'बंट' चुके वो "घर-बार" हैं...!!

:::::::: जूली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::

Tuesday, March 8, 2011

'औरत'... "आज"...!!


(("महिला-दिवस" पर महिलाओं को 'समर्पित'...))
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गूंजती 'किलकारियां'... हंसती 'आँखें'...

नन्हें-नन्हें 'क़दम'... मुट्ठियों में भींचा "बचपन"...

छनकती 'आवाज़'... मासूम 'धड़कन'...

भोली 'मुस्कान', समेटे... हुआ औरत का 'जन्म' "आज"...!!


थामी 'कलम'... आँखों में 'सपनें'...

मुस्कान 'जोशीली'... क़दमों में "तेज़ी"...

इरादे 'मज़बूत'... हौसलों में 'उड़ान'...

नापनें ऊंचा 'आसमान'... निकली 'घर' से औरत "आज"...!!


ठिठके 'क़दम'... रोकते 'फ़र्ज़'...

ज़िम्मेदार 'कंधे'... माँ-बाप का "क़र्ज़"...

उदास 'मुस्कराहट'... बंद आँखों से झांकते 'सपनें'...

फिर भींची 'मुट्ठियाँ'... देती 'हिम्मत' औरत को "आज"...!!


महकती 'मेहंदी'... संवारती 'हल्दी'...

गहरी 'मुस्कान'... जुडती नयी "पहचान"...

छूटते 'सपनें'... अपनाते 'अपनें'...

सात जन्मों के 'क़दम'... थाम हाथ 'चली' औरत "आज"...!!


पौधे-सा बढ़ता 'जीवन'... बनता वृक्ष लगते 'फल'...

 सौम्य'मुस्कान'... मुट्ठियों में "जिम्मेदारियां"...
सधे 'क़दम'... सजाती आँखें अंश के 'स्वप्न'...

फूटता अंकुर 'वृक्ष' में फिर... जन्मी 'माँ' औरत में "आज"...!!


सरल-सहज 'मुस्कान'... खुली मुट्ठियाँ देती 'साहस'...

सजाती 'सपना' फिर... अंश के उज्जवल "भविष्य" का...

ठहरते क़दम, 'देखते'... बढ़ते क़दमों का 'विकास'...

छूटते रिश्ते, छूटता 'अंश'... माँ में तलाशती 'खुद' को औरत "आज"...!!


भावहीन 'मुस्कान'... मुट्ठियाँ ना 'बंधती', कांपते 'हाथ'...

जिम्मेदारियां झुके कन्धों से 'फ़िसल' जाती... आँखें करती कुछ "तलाश"...

कांपती, ठिठकती, सोचती 'आवाज़'... छूटे रिश्ते ढूंढें 'आस-पास'...

प्रारंभ से अंत सपनों का 'हास'... चली 'सात-चक्र' पूरे कर फिर औरत "आज"...!!


:::::::: जूली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::

"इन्द्रधनुष"...




धुंधला रहे मंज़र में कुछ ना था स्पष्ट...
ना भूत, ना भविष्य और ना मैं...
कुछ था... तो वर्तमान...
जिसमें देख सकती थी...
धुंधली-सी यादें... ... ...
उन यादों से जुड़े मंज़र...
जो चमकते थे अब भी...
सतरंगी इन्द्रधनुष से...
जिनके चमकते रहने की उम्मीद थी पूरी.....
मेरे सपनों के आसमान में...
पर आसमानी चीजें...
कब छूती है ज़मीन को...
वो तो होती हैं क्षणिक...
खो जाती हैं... ... ...
जाने कहाँ...
जैसे ना था कोई अस्तित्व उनका...

ढूंढते रह जाते हैं 'हम' वो रंग...
और खो देते हैं...
'खुद' का रंग...
इन्द्रधनुष के रंगों में...
मगर छंटते बादलों के पीछे से...
चमकती किरणें...
करा जाती हैं एहसास...
कि कुछ रंग खोने के बाद ही...
हम देख पाते हैं... असली रंग...
जिसमें कोई बनावट नहीं...
कोई सजावट नहीं...!!

:::::::: जूली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::

Saturday, January 22, 2011

"माँ'"...






((ये कुछ lines (जिसे कविता नहीं कह सकती) हमनें अपनी 'माँ' के लिए तब (in 2006) लिखी थी जब कुछ दिन उनके बिना रहना पड़ा था और उनका एक छोटा-सा operation था...!!))

जिसकी बाहों नें मुझको सहारा दिया...
तब, जब मेरे क़दम भी ज़मीन पर नहीं पड़े थे...
दुनिया नें चाहे मेरे आंसू कभी ना देखे हों...
पर, उसके सामनें मैं...
ना जानें कितनी बार बेझिझक रोई...!!

मेरी कोहनी पर लगी छोटी-सी खरोंच से लेकर...
दिल पर लगी हर चोट को...
मुझसे ज्यादा... उसने सहा...!!

इम्तिहान तो मेरे होते थे...
पर असली परीक्षा उसनें दी...
मेरी कोई गलती भले ही उससे ना छुपी हो...
पर मेरी हर गलती को...
उसनें हर-एक से छुपाया...!!

मेरी हर कमजोरी को...
उसनें अपनी ममता का मरहम लगाकर...
मुझे हर तरह से... मजबूत बनाया...!!

जो मेरी "हर" कामयाबी को देखकर...
'मुस्कुरानें' में ही... "खुश" है...
उस "माँ" को आज यूँ 'बेसुध' देख...
आँखें... बस... ... ...

'छलक' पड़ीं... ... ...!!

::::::::जूली मुलानी::::::::

::::::::Julie Mulani::::::::