Thursday, October 21, 2010

"दुआ"





हूँ मौन...
नहीं जानती...
कैसा सन्नाटा है ये...
शायद ज़र्रा-ज़र्रा है इंतज़ार में...
मेरा उस खुदा से मिलन देखने को...
पर मेरा अंतस क्यों है अशांत...
क्यों है उसमें इक हूक सी...
शायद हो चला है इल्म उसे, अपने गुनाहों का...
और अब है खौफ में...
अपनी सज़ा के...

कैसे मिलूंगी नज़रें, कैसे करुँगी सजदा...
अब तो उठते भी नहीं ये हाथ दुआ को...
एक अजीब सा कंपन है इनमें...
खौफ बढ़ा... बढ़ता गया... और मूँद ली पलकें...
पर ये क्या...
बंद आँखों में तो हर तरफ रौशनी हैं...
ना खौफ... ना कंपन...
बस उजाला और चमक...

तभी एहसास हुआ एक झोंके का...
और लगा जैसे सर पे हाथ फेर,
कोई सारे गुनाह माफ़ कर गया...
कोई हर खौफ, सुकून में बदल गया...
और वो कोई 'मेरा खुदा'...
हर दुआ कबूल कर गया...!!

::::::::जुली मुलानी::::::::

::::::::Julie Mulani::::::::

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